म्युचअल फंड क्या है, mutual fund se paisa kaise kamaye, म्युचअल फंड से पैसा कैसे कमाए, म्युचअल फंड में निवेश करने के क्या फायदे हैं, Mutual Fund benefits in Hindi , म्युचअल फंड कितने प्रकार के होते हैं, Tax Rebate
हमने अपने पिछले लेख में म्युचअल फंड के बारे में जाना कि म्युचअल फंड क्या है और यह कैसे काम करता है। म्युचअल फंड के क्या क्या फायदे हैं और यह कितने प्रकार का होता है यह सब इस लेख में बताएँगे। सब टेलीविज़न पर यह विज्ञापन तो देखते ही हैं कि म्युचअल फंड सही है मगर क्या यह सच में सही है और इसके क्या फायदे हैं आइये विस्तार से इसके बारे में चर्चा करते हैं।
म्युचअल फंड क्या है (What is mutual fund in Hindi?)
म्युचअल फंड के बारे में जानने के लिए पढ़े: म्युचअल फंड क्या है?| Mutual Fund in Hindi
म्युचअल फंड में निवेश करने के फायदे
1. न्यूनतम निवेश ( कम राशि में निवेश )
म्युचअल फंड की सबसे ख़ास बात यह है कि यदि आपके पास निवेश करने के लिए कोई बड़ी राशि नहीं है तो भी आप म्युचअल फंड का हिस्सा बन सकते हो। आप यदि SIP के माध्यम से निवेश करना चाहते हो तो आप 500 रूपए प्रति माह से भी शुरू कर सकते हो और यदि एकमुश्त (lump sum) राशि निवेश करना हो तो 5000 रूपए से भी शुरुआत की जा सकती है।
2. फंड मैनेजर (Fund Manager )
आपको यदि शेयर मार्किट के बारे में बिलकुल भी जानकारी नहीं है तो भी आप म्युचअल फंड में निवेश करके अच्छा रिटर्न प्राप्त कर सकते हैं क्योंकि म्युचअल फंड के फंड हाउस को संचालन (operate) करने के लिए एक्सपर्ट फंड मैनेजर (expert fund manager) रखे जाते हैं जो कि अपने फंड को अच्छी-अच्छी कंपनियों में निवेश करते हैं। इसमें आपको अपना ज्यादा दिमाग लगाने की आवश्यकता नहीं है। बिना जानकारी के भी अच्छा रिटर्न मिल सकता है।
3, विविधीकरण
किसी भी म्युचअल फंड में फंड मैनेजर अपने निवेश को अलग-अलग जगह निवेश करते हैं , उसमे बहुत सारे शेयर्स , गवर्नमेंट बांड्स , डिबेंचर्स आदि भी सम्मिलित होते हैं इसके चलते म्युचअल फंड के एक यूनिट में भी उन सभी शेयर्स का हिस्सा शामिल होता है।
4. फण्ड प्रबंधन खर्चे
फंड को संचालन (operate) करने के लिए जो भी खर्चे होते हैं उसे सभी उपभोगताओं में वितरित कर दिया जाता है जिससे कि फंड को सँभालने की लागत को कम किया जा सके।
5. पारदर्शिता
सेबी (सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ़ इंडिया, SEBI) ने सभी म्युचअल फंड कंपनियों को निर्देश दिया है कि वो अपने पोर्टफोलियो, सभी प्रकार के खर्चों , एन ए वी और अन्य विवरणों के बारे में उपभोगता के साथ पूरी पारदर्शिता रखे।
6. टैक्स सेविंग फंड
कुछ म्युचअल फंड आयकर की धारा 80 सी के अंतर्गत टैक्स सेविंग का लाभ प्रदान करते हैं इसमें निवेश करके आप टैक्स सेविंग लाभ के साथ साथ उच्च रिटर्न भी प्राप्त कर सकते हैं। ELSS इसका एक बहुत अच्छा उदहारण है।
7. न्यूनतम जोखिम
म्युचअल फंड में निवेश करना सीधे शेयर मार्किट में निवेश करने के मुकाबले कम जोखिम वाला निवेश है। अच्छे म्युचअल फंड का चयन करके निवेश करने से अच्छा रिटर्न भी प्राप्त कर सकते हैं और जोखिम को भी कम कर सकते हैं।
म्युचअल फंड कितने प्रकार के होते हैं (Types of Mutual Funds in Hindi)
प्रत्येक व्यक्ति की आय, सेविंग और लक्ष्य अलग अलग होते हैं और निवेश का उद्देश्य भी सभी का अलग है। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए ही म्युचअल फंड भी अलग अलग प्रकार के डिज़ाइन किये जाते हैं।
1. इक्विटी फंड्स (ग्रोथ फंड / Growth Fund)
Equity म्युचअल फंड का ज्यादातर पैसा शेयर्स में निवेश किया जाता है। इसे ग्रोथ फंड भी बोला जाता है क्योंकि ऐसे फंड्स का कम से कम 65 से 70 % पैसा शेयर में ही लगाना होता है। बाकी बचे पैसे को बॉन्ड या अन्य किसी सरकारी प्रतिभूति में रखा जाता है। जैसे कि equity म्युचअल फंड का ज्यादातर हिस्से को शेयर मार्किट में निवेश किया जाता है। तो इनका रिटर्न भी शेयर मार्किट के हिसाब से मिलता है। यानी कमाई की सबसे ज्यादा संभावना होती है लेकिन रिस्क भी इसमें ज्यादा होता है।
Equity फंड से होने वाली आय पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स नहीं लगता है, जबकि शार्ट टर्म कैपिटल गेन को आपकी आय में जोड़कर टैक्स कैलकुलेट किया जाता है।
2. डेट फंड (Debt Fund)
वे म्युचअल फंड जो मुख्य रूप से सुनिश्चित आय वाली प्रतिभूतियों में निवेश करते हैं वो डेट फंड कहलाते हैं। जैसे कि सरकारी बांडस, कॉर्पोरेट बांड्स , डिबेंचर आदि। इसी के साथ किसी भी डेब्ट म्युचअल फंड के साथ यह अनिवार्य शर्त होती है कि उसका कम से कम 65 प्रतिशत पैसा बॉन्ड या बैंक डिपॉजिट में लगाया जाए। उदाहरण के लिए गवर्नमेंट बांड्स, कंपनी बांड्स, कॉर्पोरेट फिक्स्ड डिपॉजिट्स और बैंक डिपॉजिट्स वगैरह। बाकी रकम को शेयर मार्किट में लगाया जा सकता है।
डेट फंड को फिक्स्ड रिटर्न वाले बॉन्ड में लगाया जाता है, इसलिए इनमें अपेक्षाकृत जोखिम भी कम होता है। लेकिन इनसे आपको बहुत ज्यादा फायदे की भी उम्मीद नहीं करनी चाहिए। वैसे अच्छे डेब्ट फंड्स आपको बैंक फिक्स्ड डिपॉजिट्स कीअपेक्षा बेहतर रिटर्न दे सकते हैं।
अगर आप अपने डेब्ट फंड को 3 साल बाद निकालते हो तो इस पर आपको लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स चुकाना पड़ता है। इस लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स की दर बिना indexation के 10 प्रतिशत होगी और indexation के साथ 20 प्रतिशत।
अगर आप 3 साल के पहले अपनी डेब्ट म्युचअल फंड यूनिट्स को बेच देते हैं तो इससे हुई आमदनी पर आपको शार्ट टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स चुकाना पड़ेगा। इस शार्ट टर्म कैपिटल गेन को आपकी कुल आमदनी में जोड़ा जाएगा और फिर आपके टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स की गणना होगी।
3. हाइब्रिड फंड ( बैलेंस फंड/ Balance Fund)
ये तो आप जानते हैं कि म्युचअल फंड में शेयर मार्किट और बैलेंस फंड दोनों में पैसा लगाया जाता है लेकिन हर फंड में अनुपात अलग अलग होता है। बैलेंस म्युचअल फंड में दोनों जगह बराबर अनुपात में पैसा लगाया जाता है। शेयर मार्किट में जोखिम ज्यादा होता है उसी अनुसार रिटर्न भी ज्यादा मिलता है और गवर्नमेंट सिक्योरिटीज में जोखिम न के बराबर होता है और रिटर्न भी कम मिलता है। इसलिए इस फंड में रिटर्न और जोखिम को बैलेंस किया जाता है जिससे कि पैसा भी सुरक्षित रहे और रिटर्न भी अच्छा मिले।
बैलेंस म्युचअल फंड इक्विटी फंड के अपेक्षाकृत कम रिटर्न देते हैं और डेब्ट फंड के मुकाबले ज्यादा रिटर्न देते हैं। ये फंड निवेश में संतुलित रवैया (balanced approach) अपनाते हैं और market की condition के हिसाब से शेयरों और बांडों में निवेश करते हैं।
हमारे यहाँ ये देखा गया है कि कम्पनियाँ बैलेंस फंड का पैसे भी 65 प्रतिशत तक शेयर मार्किट में लगाया जाता है ताकि टैक्स बचा सकें क्योंकि जिस फंड का पैसा 65% या इससे ज्यादा शेयर मार्किट में लगाया जाये तो उसमें लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स लागू नहीं होता है।
कुछ ऐसे भी बैलेंस फंड होते हैं जो 65 % से कम पैसे शेयर मार्किट में लगाते हैं। ऐसे फंड लगभग 30 से 35 प्रतिशत पैसा ही शेयर मार्किट में लगते हैं। येह फंड मासिक आय स्त्रोत की तरह काम करते हैं जो कि हर महीने एक निश्चित राशि प्रदान करता है। इसमें पूँजी की सुरक्षा का ध्यान रखा जाता है और इसमें रिटर्न भी कम होता है परन्तु सुनिश्चित होता है। इस फंड में लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स भी लगता है।
4. इंडेक्स फंड (Index Funds)
इंडेक्स फंड भी एक तरह से इक्विटी फंड ही है, लेकिन ये इक्विटी फंड से थोड़ा अलग इसलिए है इसमें इक्विटी फंड की तरह फंड मैनेजर अपनी पसंदीदा चुनी हुई कम्पनीज में पैसा नहीं लगाते बल्कि बाजार के सूचकांकों (index) को ही कॉपी करके पैसा लगाते हैं। सेंसेक्स, निफ़्टी, CNX-200, CNX 500 वगैरह बाजार सूचकांक हैं।
इन सूचकांकों में कुछ निश्चित कंपनियों के शेयर ही शामिल होते हैं। हर शेयर का उस सूचकांक में एक निर्धारित हिस्सा होता है। कोई इंडेक्स फंड जिस सूचकांक को फॉलो करता है, वह उसमें शमिल सभी शेयरों में पैसा लगाता है। शेयरों में पैसा भी उसी अनुपात में लगाया जाता है जिस अनुपात में उन शेयरों को सूचकांक में वजन दिया जाता है। मानो किसी इंडेक्स फंड ने सेंसेक्स को कॉपी किया तो वो उन्ही 30 कंपनियों में पैसा लगाएगा जो कंपनी सेंसेक्स में हैं।
यदि कोई इंडेक्स फंड सेंसेक्स को कॉपी करता है तो इसका रिटर्न भी सेंसेक्स के जितना ही होगा। इस तरह के फंड में फंड मैनेजर की भूमिका ज्यादा नहीं होती इसलिए इस फंड में फंड मैनेज चार्ज भी बहुत कम होते हैं।
5. टैक्स सेविंग म्युचअल फंड (ELSS )
कुछ म्युचअल फंड ऐसे होते हैं जिनमे निवेश करने पर सरकार की तरफ से इनकम टैक्स में छूट भी मिलती है। इन्हे इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम या ELSS भी कहा जाता है। ये म्युचअल फंड इक्विटी लिंक्ड है यानि इनमे पैसा शेयर मार्किट में निवेश किया जाता है। इसमें टैक्स सेविंग के साथ साथ अच्छा रिटर्न भी मिलता है और इक्विटी लिंक्ड होने की वजह से जोखिम भी बरक़रार है। इसमें 3 साल का लॉकिंग पीरियड भी होता है इसका मतलब है आपके द्वारा जमा की गई राशि को आप 3 साल से पहले नहीं निकाल सकते हो।
u/s 80 C के तहत इनकम टैक्स में छूट मिलती है। आप जितना पैसा ELSS में निवेश करोगे उतनी राशि आपकी टैक्सेबल इनकम में से कम हो जाएगी।
6. सॉल्यूशन ओरिएंडेट फंड्स (Solution-Oriented Funds)
अगर आप किसी खास लक्ष्य के लिए निवेश कर रहे हैं जैसे रिटायरमेंट, बच्चों की उच्च शिक्षा और शादी आदि तो इन सभी के लिए सॉल्यूशन ओरिएंडेट फंड्स एक अच्छा विकल्प हो सकता है। इस तरह के फंड्स में इक्विटी, डेट और हाइब्रिड फंड का मिश्रण हो सकता है। इन तरह के कुछ फंड्स में लॉक-इन पीरियड भी पाया जाता है।
7. अन्य फंड्स (Other Funds)
इक्विटी, डेट, बैलेंस, टैक्स सेविंग और सॉल्यूशन ओरिएंडेट फंड्स के अलावा कई अन्य प्रकार के फंड्स जैसे लिक्विड फंड्स, ग्रोथ फंड्स, ओपन एंडेड फंड्स, क्लोज एंडेड फंड्स आदि मौजूद हैं।
निष्कर्ष
इस लेख में हमने म्युचअल फंड में निवेश करने के क्या फायदे हैं, ये सब पढ़ा । इसके साथ-साथ हमने ये जाना कि हर इंसान की आय और निवेश करने का उद्देश्य अलग-अलग है। इन सब बातों को देखते हुए ही अलग-अलग म्युचअल फंड भी बनाये गए हैं ताकि सभी अपनी सुविधानुसार फंड का चयन कर सके।
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DISCLAIMER
इस लेख में हमने म्युचअल फंड की जानकारी दी है और हम इसमें कही भी पाठको को निवेश करने के लिए प्रेरित नहीं कर रहे।निवेश करने से पहले योजना से जुड़े सभी दस्तावेज़, शर्ते व नियम ध्यान से पढ़े।